मस्ती राखिये

>> बुधवार, 17 दिसंबर 2008


मन में मस्ती राखिये,मस्ती बिना सब सून
मस्ती मिले जो जीवन में ,खिल जाए प्रसून

मस्ती मन से चाखिये ,मस्ती दिल में राखिये
मस्ती हिलोरे लेकर ,मस्ती में भीतर झांकिए

मस्ती वो पारस से है ,जीवन को सोना कर दे
मस्ती निर्मल जल के जैसे ,पाप तेरे धो दे

मस्ती ह्रदय बसाइए ,मस्ती ह्रदय खिलाइए
मस्ती का उजियारा हर घट फैलाइए

मन में मस्ती राखिये,मस्ती बिना सब सून
मस्ती मिले जो जीवन में ,खिल जाए प्रसून

2 टिप्पणियाँ:

Unknown 17 दिसंबर 2008 को 4:37 am बजे  

मन में मस्ती राखिये,मस्ती बिना सब सून
मस्ती मिले जो जीवन में ,खिल जाए प्रसून

mast masti se likha hai aapne...
bin masti jeevan adhuri hai...bas aise he mast rahiye aur mast bhari kavita likhte rahiye....

Amit K Sagar 18 दिसंबर 2008 को 2:58 am बजे  

हर एक लाइन में जीने की मस्ती है भाई...आओ कि इस मस्ती में रम जाएँ...


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