जब हुआ मैं अस्त

>> सोमवार, 21 जनवरी 2008



जब हुआ मैं अस्त तो जागी मस्ती
मैं रहा तो नही थी मस्ती .
खुद को भुलाया तो मिली मस्ती !!
मस्ती से मिलकर बदली मेरी हस्ती .

जीवन गरल था और जटिल था
पर मस्तो संग तेरा पाके
मस्ती सुधा का पान किया
अब जीवन है सहज सरल
अब जीवन है सहज सरल.

सच कहते है ज्ञानी ध्यानी
बनके भी क्या हासिल होगा
सहजता सार है इस जीवन का
सहज ही इसकी बोली
मस्तो जीवन बन रहा
अब मस्तो की टोली.

एक उत्सव है !
एक आनंद है !!
मस्ती सार इस जीवन का .

प्यारे मस्तो तुमने ही
शुभ मार्ग पर हमे प्रशस्त किया
राह दिखाई मस्ती की
और ये जीवन मस्त किया !!!

अब जीवन है धन्य
मस्ती का धान्य इसमे पूरा
पूर्ण हुआ जीवन मेरा
मिला मस्तो का डेरा .


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मस्ती जीवन की अभिलाषा



मस्तो ने कहा है ....
जीवन जीना मस्ती में ,
मस्ती में ही भगवान मिलेगा .
मुक्ति मिलेगी मस्ती में ....
मस्ती मेरे मनके हैं
और मस्ती ही मेरी माला
मैं जपता दिन रात बस
मस्ती की ही माला .
मस्ती मेरा पथ हैं
और मस्ती ही मेरी अभिलाषा .

मस्त हुआ जीवन मेरा
मस्तो तेरा साथ मतवाला !!
(प्यारे प्रभु मस्तो को अहोभाव से अर्पित !!)

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आमंत्रण




जिस आँगन में फूल खिला है ,
धूप खिली है , मन धुला है .
उस आँगन में तुम भी आओ !
मेरे प्रियतम मेरे हमजोली!!
आओ बनाये मिलकर हम ,
मस्तो की टोली.......

जीना जिसकी भाषा हो .
और हँसना हो बोली !!

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