नव बोध

>> मंगलवार, 9 दिसंबर 2008


जैसे कस्तूरी बसे मृग में
और ढूंढे वो उसे वन में
वैसे ही ईश बसे हम सब में
हम भटके वन वन में

मस्ती की कस्तूरी से
जीवन सुगंध पाता है

जब मस्ती मिल जाती है
ईश भी मिल जाता है
मस्ती ख़ुद से मिलना है
मस्ती ईश में रमना है

अंतर दृष्टि खुल जाती है
नव बोध हो जाता है
मस्ती के नयनो को पाकर
आत्म ज्ञान जाता है

नव बोध मस्ती सुबोध

मेरे प्रियतम ! मेरे हमजोली !!
आओ नया बोध हम पाए
कोमल सा मन को करके
हम भगवन से मिल जाए


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