आ पा ले मस्ती में ख़ुद को

>> शुक्रवार, 21 नवंबर 2008


मेरा अब कुछ भी नही
मैं अब कुछ भी नही
मस्ती मिली जब से मुझको
सौपं दिया मस्ती में ख़ुद को

स्वीकार किया मस्ती को
तन मन जीवन तब से
हो गया अब बेडापार
मस्ती ने खोल दिये हृदय के द्वार

मस्ती स्वीकार परमपिता का
मस्ती ही मुक्ति का द्वार

भाव जगे मन में अब ऐसे
मस्ती ही हो सबकुछ जैसे
मस्ती रस से परिपूर्ण हुआ
अंहकार से शून्य हुआ


"मैं" तो कब का चला गया
भगवन मस्ती में समा गया

मेरे प्रियतम ! मेरे हमजोली
आओ मिटा दे ख़ुद को ऐसे

पा ले हम अपना हमजोली
ख़ुद से मिल लें ख़ुद से बोले
अब मस्ती की बोली

आओ बनायें मिलके हम
मस्तो की इक टोली
ख़ुद से मिलना जिसकी हसरत
और हसना हो बोली

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