मस्ती की झांझर

>> शुक्रवार, 25 जुलाई 2008


मस्ती की झांझर झन से बाजे
मस्ती की झंकार सुनाये
मस्ती के रस को पागे
जीवन राग बजाये

कितनी बार है जीवन पाया
कितनी बार उसे यूँ ही गंवाया
मस्ती को जब जब न अपनाया
जीवन की सार्थकता को न पाया

मस्ती के गीत को जब
हृदय से लगाया
मस्ती का राग जब
अधरों ने गाया
जीवन काटों मे मुस्काया ।

मस्ती कीर्तन भगवन का
मनुज की उन्मुक्त उड़ान मस्ती
मानव तन की मुक्ति मस्ती
जीवन की भक्ति मस्ती

मस्ती की झांझर मंजीरा बाजे
मेरे आँगन

मेरे प्रियतम ! मेरे हमजोली !!
आओ गायें -बजाये मिलकर
बोले हम मस्ती की बोली ।

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