मस्ती दर्पण

>> रविवार, 7 दिसंबर 2008


मस्ती मन का दर्पण है ,
मस्ती माधव का वृन्दावन है
मन दर्पण झांक के देखो
मन का झरोखा खोल के देखो

मन की गांठ जब खुलती है
एक नई चेतना उदित होती है

मन का दर्पण झांक के देखो
रु ब रु हो जाओ ख़ुद से
मस्ती में ही मिल लो ख़ुद से
मस्ती में ही मिल लो रब से

जिस मन मस्ती बसती है
मन बन जाता वो मन्दिर

मेरे प्रियतम ! मेरे हमजोली !!
आओ बनाये हम
मन को मन्दिर
मन मन्दिर में भगवन पाए
मस्ती के मन दर्पण में
दुनिया को भी उजाला पायें

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