जीवन को लय में लायें

>> शनिवार, 29 नवंबर 2008

(मुंबई में आंतक का शिकार हुए लोगो को विनम्र और अश्रुपूर्ण श्रद्धा सुमन के साथ सादर )

माना रात का दर्द गहरा है
लेकिन
ये भी उतना सच है
गहरी
रात के बाद ही सवेरा है
माना
काली रात को भुलाना
इतना
आसान नही

माना
काली रात का दर्द अभी
इतनी
ज़ल्दी भरेगा भी नही
किंतु
नियति यही कहती है
जो
बीत गया उसे बिसराओ

जीवन
की नई शुरुआत के लिए
मस्ती
की राह पर जाओ
शोक
में भी गीत गाओ
पीड़ा
में भी जीत गाओ
मस्ती
यही सिखाती है
हर
दर्द में भी ये मुस्काती है

माना
जटिल होगा शोक में
कंठ
से गीतों का बहना
दर्द को पीना सीखना होगा
क्योंकि
जीवन है सबसे बड़ा
इस प्रहार से जो दर्द मिला
उसको
शक्ति की ढाल बना

मस्ती
में ये दर्द भी पी लेंगे
मस्ती
से जीवन बनायेंगे
जहाँ दर्द दहशत होगी
जहाँ
बस मस्ती होगी
मस्ती
जैसी भक्ति होगी

मेरे
प्रियतम !मेरे हमजोली!
आओ
भुला दे हर वेदना को
जीवन
को जिए अब नए सिरे से
जीवन में नए उजाले भर लायें

जीवन
को नई लय में लाये
जीवनको
उल्लास बनाये
जीवन
को फिर से उत्सव बनाये
अमन के शत्रु को अपना
हौसला
हम दिखलाये

जीवन
को फ़िर से लय में लाकर
हम
जीवन का गीत कोने कोने पहुंचाएं
जीवन को लय में लायें
मस्ती
में जीवन को गायें


(मुंबई में आंतक की काली रात की समाप्ति के बाद अब चुनौती जीवन को फ़िर से पटरी पर लाने की हैहमारे देश ने हमेशा समूची दुनिया का कल्याण चाहा हैआध्यात्म ही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है .इस पीड़ा में भी हम जीवन के गीत गाने नही छोडेंगे ...हम प्रेम शान्ति और अमन का संदेश देना हमेशा की तरह जारी रखेंगेहमने जीवन की जय का गीत गाना नही छोड़ा ...दहशतगर्दो यही तुम्हारी सबसे बड़ी हार है ...!!!)

2 टिप्पणियाँ:

!!अक्षय-मन!! 29 नवंबर 2008 को 9:28 am बजे  

aapki hamdardi aur aapka pyar hi chahiye jaise ki aapki rachna bol rahi hai.......
lakhon aawazin hain hai aur ek sur hai ....wo hai deshprem ka....


एक दर्पण,दो पहलू और ना जाने कितने नजरिये /एक सिपाही और एक अमर शहीद का दर्पण और एक आवाज
अक्षय,अमर,अमिट है मेरा अस्तित्व वो शहीद मैं हूं
मेरा जीवित कोई अस्तित्व नही पर तेरा जीवन मैं हूं
पर तेरा जीवन मैं हूं

अक्षय-मन

डा ’मणि 4 दिसंबर 2008 को 6:58 am बजे  

सादर अभिवादन अमिताभ जी
पहले तो हिन्दी ब्लोग्स के नये साथियों मे आपका स्वागत है , बधाई स्वीकार करें

चलिये अपने रचनात्मक परिचय के लिये पिछले दिनो के दुखद दौर मे लिखने मे आये ये २-३ मुक्तक देखें .

हर दिल मे हर नज़र मे , तबाही मचा गये
हँसते हुए शहर में , तबाही मचा गए
हम सब तमाशबीन बने देखते रहे
बाहर के लोग घर में , तबाही मचा गए

और

राजधानी चुप रही ..

किसलिए सारे जावानों की जवानी चुप रही
क्यों हमारी वीरता की हर कहानी चुप रही
आ गया है वक्त पूछा जाय आख़िर किसलिए
लोग चीखे , देश रोया , राजधानी चुप रही

और

हमको दिल्ली वापस दो

सारा बचपन ,खेल खिलौने ,
चिल्ला-चिल्ली वापस दो
छोडो तुम मैदान हमारा ,
डन्डा - गिल्ली वापस दो
ऐसी - वैसी चीजें देकर ,
अब हमको बहलाओ मत
हमने तुमको दिल्ली दी थी ,
हमको दिल्ली वापस दो...

चलिये शेश फ़िर कभी

आपकी प्रतिक्रियाओं का इन्तज़ार रहेगा
डॉ . उदय 'मणि '
684महावीर नगर द्वितीय
94142-60806
(सार्थक और समर्थ रचनाओं के लिये देखें )
http://mainsamayhun.blogspot.com


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