मस्ती मदिरा

>> सोमवार, 24 नवंबर 2008


बदले ख़ुद की हस्ती
पल पल जीवन कर ले मस्ती
मस्ती मस्ती मेरी भक्ति
मस्ती मस्ती मेरी मुक्ति

मस्ती को मदिरा को पी ले
मस्ती में हो जाए बेसुध
होके बेसुध साध ले जीवन
मस्ती में करदे ख़ुद को अर्पण

मयकदे मस्ती के जब झूमते हैं
खुदा के आँगन को ये चूमते हैं

मस्ती की इस मदिरा में
आओ डूबे
मेरे प्रियतम ! मेरे हमजोली !!

मस्ती की मदिरा में झूमें
मस्ती की मदिरा को पीके
कर ले भवसागर पार हम
मेरे हमजोली

3 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari 24 नवंबर 2008 को 2:39 am बजे  

बढ़िया मस्ती है, लगे रहिये.

रंजू भाटिया 24 नवंबर 2008 को 7:26 am बजे  

बहुत सुंदर लगी यह ..आपका ब्लॉग आज पहली बार पढ़ा है अच्छा लगा इसको पढ़ना .लिखते रहें ..शुक्रिया

!!अक्षय-मन!! 24 नवंबर 2008 को 10:03 am बजे  

आप और आपकी रचनाये सच में हमेशा की तरहां मस्त ही होती हैं............


मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है आने के लिए
आप
๑۩۞۩๑वन्दना
शब्दों की๑۩۞۩๑
सब कुछ हो गया और कुछ भी नही !!
इस पर क्लिक कीजिए
मेरी शुभकामनाये आपकी भावनाओं को आपको और आपके परिवार को
आभार...अक्षय-मन


  © Blogger template Skyblue by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP