जीवन गुंजन

>> शनिवार, 14 जून 2008


मस्ती में डूबा
हर छण पावन है
जीवन का रोपण है
मस्ती ।

जीवन का गुंजन है मस्ती
जीवन का यह नाद
जीवन का आधार है मस्ती
परम ईश का यह प्रसाद

मस्ती तो एक सुधा है
जीवन की यह वसुधा है
जीवन का गौरव है मस्ती
जीवन पुष्प का सौरभ मस्ती

मस्ती के पौधे को रोपो
इसको पालो इसको सींचो
इसका पौधा वृक्ष बनेगा
नए जीवन की छांव बनेगा

इस लोक से उस लोक तक
मस्ती रस को फैला दो
परम ईश को भी अब
मस्ती का भोग लगा दो

फ़िर वहां से जब कोई आएगा
मस्ती रस को संग लाएगा
फ़िर जो यहाँ से जाएगा
मस्ती रस को ही ले जाएगा

मस्ती को सूत्र बनाओ
प्रभु से जुड़ जाने का
मस्ती को मंत्र बनाओ
प्रभु को मनाने का

मस्ती के वट वृक्ष की
इस शीतल छाँव में
तुम भी आओ
मेरे प्रियतम ! मेरे हमजोली!!

आओ बनाये मिलकर हम
मस्तों की इक टोली
जीना जिसकी भाषा हो
और हँसना हो बोली .

4 टिप्पणियाँ:

Dr. Chandra Kumar Jain 14 जून 2008 को 1:12 am बजे  

जीवन की भाषा में कविता.
बधाई इस मस्त टोली को,
प्रेम-आनंद की बोली को.
====================
डा.चंद्रकुमार जैन

Udan Tashtari 14 जून 2008 को 4:49 am बजे  

आओ बनाये मिलकर हम
मस्तों की इक टोली
जीना जिसकी भाषा हो
और हँसना हो बोली .

-बहुत उम्दा संदेशा. बढ़िया है.

Amit K Sagar 24 जून 2008 को 9:24 am बजे  

मस्तो की रचनाओं की बाबत क्या कहू जो सिर्फ़ और सिर्फ़ मस्ती में ही लिखी भी जान पढ़ती है और पढ़ने वाले को भी मस्ती में कर देती है...और संजीदगी भी यही है की मस्ती की नजाकत आज के मानव को बेहद है...शुक्रिया.. लिखेत रहिये...आप सचमुच बहुत अच्छा लिखते हैं...आपकी रचनाओं में हरिवंश राय बच्चन की झलक प्रतीत होती है. आप मस्ती को जन-जन तक पहुंचाएं, एसी उम्मीद आपसे बंटी है.
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आभार.
उल्टा तीर

विक्रांत बेशर्मा 23 जुलाई 2008 को 9:40 am बजे  

बहुत अच्छी रचना है ..बधाई स्वीकारें.


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