मस्ती का वरदान

>> मंगलवार, 15 अप्रैल 2008

अपने हृदय की गांठ तो खोलो
फिर देखो आनंद बरसता है
मस्ती को पाने की खातिर
मानव जीवन तरसता है ।

धन्य हुआ उनका जीवन
जिनको मस्ती का वरदान मिला
जीवन जिया फिर मस्ती मे
मस्ती मे ही दुनिया को विदा कहा ।

एक प्रवाह है मस्ती
गतिमान धारा है मस्ती
इस धरा पे वरदान है मस्ती
उस लोक का वरदान है मस्ती

मस्ती को जिसने अपनाया है
उसने कभी फिर कुछ न खोया
मस्ती मे पाया ही पाया
मस्ती मे नाचा ही नाचा .

3 टिप्पणियाँ:

मेनका 15 अप्रैल 2008 को 7:24 pm बजे  

good one...agar masti ke aour bhi rang dekhne ko mile to yah blog aour bhi sundar ban jaayega.

विनोद पाराशर 16 अप्रैल 2008 को 9:39 am बजे  

भाई अमिताभ जी,आपने ठीक कहा यदि कोई काम मस्ती में डूबकर किया जाये,तो उसका आनन्द ही अलग होता हॆ.लो! हम भी आपकी टोली में शामिल हो गये.

समयचक्र 24 अप्रैल 2008 को 6:50 pm बजे  

बहुत सुंदर रचना बहुत उम्दा है आभार


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