मस्ती की राह
>> शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2008
अर्पित पुष्प ! मस्तो तुमको मैं
मस्ती में झूम झूम करता हूँ
पुण्य उदित हुआ मेरा अब
मस्ती की राह पकड़ता हूँ .
आज लगी है धरती गाने
आज मिले हैं नए ठिकाने ।
आज पुण्य उदित हुआ है
मस्ती का रस मिला है
जाग उठी आत्मा
मिल गया परमात्मा !!
मैं नाच रहा मस्ती में
डूब डूब
इस सुनहरी धूप को
चूम चूम !!
अर्पित पुष्प ! मस्तो तुमको मैं
मस्ती में झूम झूम करता हूँ
पुण्य उदित हुआ मेरा अब
मस्ती की राह पकड़ता हूँ ।
पहले था मैं अस्त व्यस्त
अब मैं हूँ बस मस्त मस्त !!
जीवन जागा पुण्य प्रताप से
डर नहीं मृत्यु का आज से
जीवन के इस राग में
बह जाना है झरना बनके
जीवन के इस आसमान में
उड़ जाना है बादल बनके
संवर रहा जीवन मस्ती में
मस्ती में ही विस्तार मिला है
जीवन की जय
मृत्यु का क्षय !!
अर्पित पुष्प ! मस्तो तुमको मैं
मस्ती में झूम झूम करता हूँ
पुण्य उदित हुआ मेरा अब
मस्ती की राह पकड़ता हूँ ।
सुबह होती दिखती है
कायनात गाती सी लगती है
मस्ती में चाँद भी फलक पर
मस्तो तेरे ही गीत गाता है
रोज़ सवरे मस्त होके
सूरज मेरी खिड़की पे आता है !!
अर्पित पुष्प ! मस्तो तुमको मैं
मस्ती में झूम झूम करता हूँ
पुण्य उदित हुआ मेरा अब
मस्ती की राह पकड़ता हूँ ।
मेरे बंजारे जीवन में
मस्ती की झंकार
पायल पहने गोपाला भी
मस्ती में अब मतवाला!!
अर्पित पुष्प ! मस्तो तुमको मैं
मस्ती में झूम झूम करता हूँ
पुण्य उदित हुआ मेरा अब
मस्ती की राह पकड़ता हूँ ।
(प्यारे मस्तो! जीवन को उत्सव बनाने का जो मंत्र तुमने दिया शुक्रिया शुक्रिया )
1 टिप्पणियाँ:
मस्तो की बोली को कौन समझेगा
वही जो मस्ती मैं बोलेगा
मस्तो की बोली लगती बंदूक की गोली
जिस पर चले वो गाये राग-रागिनी
विरह का गीत नहीं कोई गाता
मस्तो की टोली मैं केवल मस्त होकर ही कोई आता
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